हमने कभी गुलामी को अनुभव नहीं किया क्योंकि हम आज़ाद भारत में पैदा हुए है पर पल पल एक गुलामी महसूस कि है जो समाज कि जटिल प्रक्रिया ने समझाया है।
जहां एक और हम सबको पता है कि आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस से लड़ रही है और हमारा देश उतार चढाव से आज भी जूझ रहा है।

एक तरफ जहां उभरते हुए एक कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की मौत से सवाल उठते है निपोटिज्म पर तो दूसरी ओर हमारे न्याय व्यवस्था पर।
जहां राम मंदिर का निर्माण हुआ वहीं दूसरी ओर कहीं आग लगा दिया गया।

हम सभी जानते है कि देश करप्शन, गरीबी, सोशल इनिक्वालिटी, घरेलू हिंसा , असाक्षरता से पीड़ित हैं।
भारतीय समाज मुख्यतः पितृसत्तात्मक है पर ये केवल एक समस्या नई है में आज बात करना चाहती हूं हर घर में रोज होने वाली उन बातों को जिन्हें हम नजरंदाज कर देते है इसलिए कि हमें बात को बढावा नहीं देना ।

गलत ये नहीं है जब ये कहां जाए कि एक लड़की को ढंग के कपड़े पहने चाहिए पर कूटनीति और पाखंड तब होता है जब हम अपनी बेटी को बिकिनी पहनने कि भी अनुमति देते है और बहू को पल्लू करने बोलते है।
हमें ससुराल में कैसे रहना है इसकी सीख हम अपने बच्चों को देने से ज्यादा बहू को देना पसंद करते है।

माँ एक बहुत बड़ा शब्द होता है वो अपने बच्चे की हर संभव रक्षा करती है पर दूसरे घर से आई बेटी को अपमानित करती है और दूसरे घरवालों को भी बढ़ावा देती है वो गलत है साथ ही कहीं ना कहीं ये भी सच है कि एक औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है।
2020 में जीने वाले हमलोग सोच के मामले में आज भी 18 वीं सदी में जी रहे है।

अब हमें लड़की ऐसी चाहिए जो पढ़ी लिखी, सुन्दर और अच्छे घर से हो पर उसी के साथ गूंगी और बहरी भी होनी चाहिए।
रुढ़िवादी आज भी कायम है। छोटे शहरों और गांवों में पर्दा प्रथा का आज भी प्रचलन है। दूसरे की कामिया निकालना तो एक आम बात है पर अपनी कमिया नहीं दिखती। कहते है कि कोई सही नहीं और गलत भी नहीं क्योंकि अपने आप को कभी कोई गलत मानता ही नहीं है।

दहेज कि प्रथा तो काफी आम है और जो लोग आजकल दहेज नहीं मांगते उम्मीद करते है कि शादी में बहुत अच्छे गिफ्ट्स मिले और बहुत अच्छी शादी हो ताकि सबको दिखा सके भले ही एक पिता इसके लिए अपनी सारी जमा पूंजी ही ना लगा दे।
आज भी हमारे समाज में इतनी कुरीतियों और अन्धविश्वास को जगह मिली है कि लोग जादू टोना जैसी चीजों पे विश्वास करते है। नींबू मिर्च लगाना हो या फिर बिल्ली का रास्ता काटना हम सब मानते आए हैं।

जिस देश में देवी की पूजा होती है वहां पुजारिन काम दिखते है। लक्ष्मी घरेलू हिंसा कि शिकार है तो सरस्वती को पढ़ने नहीं दिया जाता। कितने घरों में आज भी औरतों का काम पे जाना गलत माना जाता है। आए दिन न्यूज में छोटे बच्चो के साथ हुए रेप की घटनाओं को पढ़ते है।

ऐसे बहुत से मुद्दे है जिनसे हमें आजादी आज तक नहीं मिली है मैंने तो संक्षेप में अपनी बात रखी हैं।
हमें कब सही मायनों में आज़ादी मिलेगी?